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________________ सिद्ध वि० IAL TAPAIRIT १ इन्द्रियजनित न दुख जहां, सदा निजानन्द रूप। निर-आकुल स्वाधीनता, वरतै शुद्ध स्वरूप ॥३०॥ ॐ ह्री सूरिपरमात्म-स्वरूपाय नम अध्यं । (रोला छन्द)-संपूरण श्रुत सार निजातम बोध लहानो, निज अनुभव शिव मूल मानु उपदेश करानो। शिष्यनके अज्ञान हरै ज्यू रवि अंधियारा, पाठक गुण संभवै सिद्ध प्रति नमन हमारा ॥३०१॥ ॐ ह्री पाठकेभ्यो नम अध्यं । मुक्ति मूल है आत्मज्ञान सोई श्रुत ज्ञानी, तत्त्व ज्ञान सो लहै निजातम पद सुखदानी। शिष्यनके० ___ ॐ ह्री पाठकमोक्षमण्डनाय नमः अध्यं । भवसागर ते भव्य जीव तारण' अनिवारा, तुममें यह गुण अधिक आप पायो तिस पारा। शिष्यनके० ॐ ह्री पाठकगुणेभ्यो नमः अध्यं । सप्तमी पूजा
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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