SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिद्ध० वि० २११ निज प्रात्म विषै नित मगन रहें, जगके सुखमूल न भूलि चहैं । धरि० ॐ ह्री सूरिहासाय नम अयं ॥ २५६ ॥ बनवास उदास सदा जगतै, पर ग्रास न खास विलास रतै । धरि० ॐ ह्री सूरिहसगुणाय नम अध्य ।। २६० ।। निज नाम महागुरण मंत्र धरै छिन मात्र जपे भवि प्राश वरं । धरि० ॐ ह्री सूरिमत्रगुणानन्दाय नमः अयं ॥ २६१ ।। परमोत्तम सिध परियाय कही, अति शुद्ध प्रसिद्ध सुखात्म मही । धरि० ॐ ह्री सूरिमिदानन्दाय नम प्रयं ।। २६२ || ( माला छन्द) - शशि सन्ताप कलाप निवारण ज्ञान कला सरसं, मिथ्यातम हरि भवि आनंद करि अनुभव भाव दरसं । सूरि निजभेद कियो परसै, भये मुक्ति में नमू शीश नित जोर युगल करसें ॥ २६३ ॥ ॐ ह्री सूरिश्रमृतचन्द्राय नम अयं ॥ २६३ ॥ पूररण चन्द्र सरूप कलाधर ज्ञान सुधा बरसै । भवि चकोर चित चाहत नित मनु चररण जोति परसं । सूरि० ॐ ह्रीं सूरिघाचन्द्रस्वरूपाय नमः श्रयं ॥ २६४ ॥ स्पष्ठम् पूजा २११
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy