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________________ जगमोहित जीव न पावत है, यह मंत्र सु धर्म कहावत हैं। सिद्ध० धरि भक्ति हिये गणराज सदा, प्रणम् शिवास करे सुखदा । वि. ___ॐ ह्री सूरिधर्माय नम अध्यं ।।२५२।। २१० चिदरूप चिदातम भाव धरे, गुरण सार यही अविरुद्ध करें । धरि० ___ॐ ह्री सूरिचैतन्य स्वरूपाय नम अध्यं ॥२५३।। अविकार चिदाम आनन्द हो, परमातम हो परमानंद हो । धरि० ॐ ह्री सूरिचिदानदाय नम अध्यं ॥२५४।। । निज ज्ञान प्रमारण प्रकाश करै, सुख रूप निराकुलता सु धरै । धरि० ___ॐ ह्री सूरिज्ञानानन्दाय नम अध्यं ।।२५।। धरि योग महा शम भाव गहैं, सुख राशि महा शिववास लहै । धरि० ___ ॐ ह्री सूरिशमभावाय नम अध्यं ।।२५६।।। सम भाव महा गुण धारत है, निज आनंद भाव निहारत है।धरि० ॐ ह्री सूरितपोगुणानन्दाय नमः प्रध्यं ॥२५७॥ पूजा शिवसाधनको विधिनाश कहा, विधिनाशनको तप कर्ण महा।धरि० २१० ॐ ह्री सूरितपोगुणस्वरूपाय नम मध्यं ।।२५८।। षष्ठम्
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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