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सूर सम आप परतेज करतार है, सूरही मोक्षनिधि पात्र सुखकार है। सिद्ध० सूरि सिद्धांत के पारगामी भये, मै नम्जोरकर मोक्षधामी भये ॥
ॐ ह्री सूरिपात्रेभ्यो नमः अर्घ्य ॥ २२७ ।। - २०५, बाहय छत्तीस अन्तर अभेदात्मा, आप थिर रूप है सूर परमात्मा।। सूरि सिद्धांत केपारगामी भये, मैं नम जोरकर मोक्षधामी भये ॥
ॐ ह्री सूरिगुणशरणाय नम अयं ।। २२८ ।। है ज्ञान उपयोग में स्वस्थिता शुद्धता,पूर्ण चारित्रता पूर्ण ही बुद्धता।। सूरि सिद्धांतके पारगामी भयो, मै नमजोरकर मोक्षधामी भये ।
ॐ ह्री सूरिधर्मगुणशरणाय नमा अध्यं ।। २२६ ।। शरण दुख हरण पर आपही शर्णहैं, आपने कार्य मे प्रापही कर्ण है। सूरि सिद्धांतके पारगामी भये, मैं नम जोरकर मोक्षधामी भये ॥
___ॐ ह्री सूरिशरणाय नमः अयं ॥ २३०॥ दोहा--ज्यों कन्चन विन कालिमा, उज्ज्वल रूप सुहाय ।
त्योंही कर्म-कलंक बिन, निज स्वरूप दरसाय ॥२३१॥ ___ॐ ह्री सूरिस्वरूपशरणाय नम. अध्यं ।
मप्तमी