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________________ सिद्ध कामिनी मोहन छन्द,मात्रा २० । वृद्धपरवृद्धगुणगहननितहोजहाँ, शाश्वतं पूर्णता सातिशयगुण तहां। 6. सूरि सिद्धांत के पारगामी भय, मै नजोरकर मोक्षधामी भय। २०४ ॐ ह्री सूरिधोरगुणपराक्रमेभ्यो नम अय॑ ।।२२२।। एक सम-भाव सम और नहीं ऋद्धि है, सर्वही ऋद्धिजाके भये सिद्ध है। सूरि सिद्धांत के पारगामी भये, मै नम जोरकर मोक्षधामी भये ॥ ___ॐ ह्री सूरिऋद्धिऋषिभ्यो नम अयं ।। २२३ ।। जोगके रोकसे कर्मका रोक हो, गुप्तसाधनकिये साध्य शिवलोक हो॥ सूरि सिद्धांतके पारगामी भये, मै नमू जोरकर मोक्षधामी भये ॥ ॐ ह्रो सूरिसुयोगिनेभ्यो नम. अध्यं ।। २२४ ।। ध्यान बल कर्मके नाशके हेतु है, कर्मको नाश शिववास ही देत है। सूरि सिद्धांत के पारगामी भये, मैं नमू जोरकर मोक्षधामी भये ॥ ॐ ह्री सूरिध्यानेभ्यो नम अर्ध्य ॥ २२५ ।। पंचधाचारमे प्रात्म अधिकार है, बाहय आधार आधेय सुविकार है। पूजा सूरि सिद्धांत के पारगामी भये, मै नमजोरकर मोक्षधामी भये॥ २०४ ही सूरिघात्रिभ्यो नम-अध्यं ।। २२६ ।। सप्तमी
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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