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________________ सिद्ध वि. २०२ बीच में न अन्तराय, आप ही सुखाय धाय । या अबाध धर्मको प्रकाशमें करै सहाय ॥ सरि धर्मको प्रकाश, सिद्ध धर्म रूपं जान। मै नमूत्रिकाल एक ही अभेद पक्षमान ॥२१६॥ ॐ ह्री सूरिदर्शनलोकोत्तमेभ्यो नम. अध्यं । मोह भारको निवार, शुद्ध चेतना सुधार । यह वीर्यता अपार लोकमे प्रशंसकार ॥ सरि धर्मको प्रकाश, सिद्ध धर्म रूप जान । मैं नमूत्रिकाल एक ही अभेद पक्षमान ॥२१७॥ ॐ ह्री सूरिवीर्यलोकोत्तमेभ्यो नमः अर्घ्य । धर्म केवली महान, मोह अन्ध तेज भान । सप्त तत्त्वको बखानि, मोक्ष-मार्ग को निधान । सूरि धर्मको प्रकाश, सिद्ध धर्म रूप जान । मै नमूत्रिकाल एक ही प्रभेद पक्षमान ॥२१॥ ॐ ह्री केवलधर्माय नम अध्यं । सप्तमी २०२
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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