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________________ Annurunny unwar हे जगत्रय-नायक मंगलदायक, मंगलमय सुखकार । मै नम् त्रिकाला हो अघ टाला, तपहर शशि उनहार ।१४१॥ ॐ ह्री सिद्धमगलज्ञानेभ्यो नम अध्यं । यह मोह अन्धेरी छई घनेरी, प्रबल पटल रहो छाय। तुम ताहि उधारो सकल निहारो, युगपत् प्रानन्ददाय ॥ हे जगत्रय-नायक मंगलदायक, मंगलमय सुखकार । मै नमत्रिकाला हो अघ टाला, तपहर शशि उनहार ॥१४२॥ ___ॐ ह्री सिद्धमगलदर्शनेभ्यो नम. अयं । निजबंधन डोरी छिन मे तोरी, स्वयं शक्ति परकाश । निरभय निरमोही, परम अछोही, अन्तरायविधि नाश ॥ हे जगत्रय-नायक मंगलदायक, मंगलमय सुखकार । मै नमूत्रिकाला हो अघ टाला, तपहर शशि उनहार ॥१४३॥ ॐ ह्री सिद्धमगलवीर्येभ्यो. नमः अध्यं । जाके प्रसादकर सकल चराचर, निजसों भिन्न लखाय । रुष राग निवारा सुख विस्तारा, पाकुलता विनशाय ॥ सतमी पूजा १८५
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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