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________________ वि० तिहू लोक के शुद्ध सम्यक्त्व धारी, महा भार संजम धरै है अबारी। सिद्ध० भये सिद्ध राजा निजानंद साजा, यही मोक्ष नाजा नमः सिद्ध काजा॥ ॐ ह्री त्रिलोकसिद्धेभ्यो नम अयं ।। १३८ ॥ (मरहठा छंद)-तिहुँ लोक निहारा, सब दुखकारा पापरूप संसार । ताको परिहारा सुलभ सुखारा, भये सिद्ध अविकार ॥ हे जगत्रय-नायक मंगलदायक, मंगलमय सुखकार । मै नम त्रिकाला हो अघ टाला, तप हर शशि उनहार ।१३६॥ ॐ ह्री सिद्धमगलेभ्यो नमः अध्यं । तिहुँ कर्म कालिमा लगी जालिमा, करै रूप दुखदाय । तुम ताको नाशो स्वयं प्रकाशो, स्वातम रूप सुभाय ॥ हे जगत्रय-नायक मंगलदायक, मंगलमय सुखकार । मै नमूत्रिकाला हो अघ टाला, तपहर शशि उनहार ॥१४०॥ षष्ठम् ॐ ह्री सिद्धमगलस्वरूपेभ्यो नमः अर्घ्य ।। तिहुँ जगके प्राणी सब अज्ञानी, फंसे मोह जंजाल । १८४ - हो तिहुँ जगत्राता पूरण ज्ञाता, तुम ही एक खुशहाल ॥ Mrunmnnarunnnwunnnnnnw पूजा
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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