SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिद्ध० वि० १७६ उत्तर गुरण सब लख चौरासी, पूरण चारित भेद प्रकाशी । सो रहंत सिद्धपद पायो, भाव सहित हम शीश नवायो ॥ ६८ ॥ ॐ ह्री पन्तगुणाय नमः अर्घ्यं । प्रतम शक्ति जास करि छीनी, तास नाश प्रभुताई लीनी । सो अरहंत सिद्धपद पायो, भाव सहित हम शीश नवायो ॥ ६६ ॥ ॐ ह्री महत्परमात्मने नमः अयं । निज गुरग निज ही मांहि समाया, गणधरादि बरनन न कराया । सो अरहंत सिद्धपद पायो, भाव सहित हम शीश नवायो ॥१००॥ ॐ ह्री अर्हस्वरूपगुप्ताय नमः श्रव्यं । दोधक छन्द । जो निज प्रातम साधु सुखाई, सो जगलेश्वर सिद्ध कहाई । लोक शिरोमरिण है शिवस्वामी, भाव सहित तुमको प्रणमामी ।१०१ ॐ ह्री सिद्ध ेभ्यो नम अर्घ्यं । सर्व विशुद्ध विरूप सरूपी, स्वातम रूप विशुद्ध अनूपी । लोक शिरोमरिण है शिवस्वामी, भाव सहित तुमको प्रणमामी ॥१०२॥ ॐ ह्री सिद्धस्वरूपेभ्यो नम अर्घ्यं । augura. सप्तमी पूजा १७६
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy