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________________ वि. केवलविभवउपाय प्रभूजिनपदलहो, चौदह अतिशयदेवनकरिसेवनकियो । सिद्ध इनहींसो है पूज्य सिद्धपरमेश्वरा, हमहूँ यह गुरणपाय नमन यातै कारा।" " ॐ ह्री अहंदुचतुर्दशप्रतिशाय नमः अध्य ॥३॥ १७५ चौतिस अतिशयजेपुराणबरणे महा, मुक्ति समाज अनूपम श्रीगुरुने कहा। इनहींसो है पूज्य सिद्ध परमेश्वरा, हमह यह गुणपाय नमन यातकरा॥ । ॐ ह्री अर्हच्चतुस्त्रिशतअतिशयविराजमा राय नमः अध्य।६४ । डालर छन्द। लोकालोक अणु सम जानो, ज्ञानानंत सुगुरण पहिचानो। सो अरहंत सिद्ध पद पायो, भाव सहित हम शीश नवायो॥६॥ ॐ ह्री अहंज्ज्ञानानन्दगुणाय नमः अर्घ्य । समरस सुस्थिर भाव उघारा, युगपति लोकालोक निहारा । सो अरहंत सिद्धपद पायो, भाव सहित हम शीश नवायो ॥६६॥ ॐ ह्री अहंध्यानानन्तध्येयाय नम प्रय॑ । इक इक गुरणका भाव अनन्ता, पर्पयरूप सो है अरहन्ता । सप्तमी सो अरहंत सिद्धपद पायो, भाव सहित हम शीश नवायो॥६७॥ ॐ ह्री अहंदनतगुणाय नम. अर्ध्य । १७५ पूजा
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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