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________________ सिद्ध वि. १६० murennari मोहमलिनता जग जिय नाश, केवलता गुण पावै । सर्व शुद्धता पाइ नमत हैं, हम अरहंत कहावै ॥१८॥ ॐ ह्री अर्हत्केवलगुणाय नम अयं ।। मोह जनित सो रूप विरूपी, तिस विन केवलरूपा। श्री अरहन्त रूप सर्वोत्तम, बन्दू हो शिवभूपा ॥१६॥ ॐ ह्री अहंदकेवलस्वरूपाय नम अy तास विरोधी कर्म जीति करि, केवल दरशन पायो । इस गुरण सहित नमत तुम पद प्रति, भावसहित शिरनायो।२०॥ ॐ ह्री अर्हत्केवलदर्शनाय नम अयं ।। निर आवरण करण विन जाको, शरण हरण नहीं कोई। केवल ज्ञान पाय शिव पायो, पूजत है हम सोई ॥२१॥ ॐ ह्री अर्हत्केवलज्ञानाय नम अयं । अगम अतीर भवोदधि उतरे, सहज ही गोखुर मानो। केवल बल परहन्त नमें हम, शिव थल बास करानो ॥२२॥ ॐ ह्री अर्हत्केवलवीर्याय नम अयं । ३ सप्तमी पूजा mannamnnn
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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