SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ਚਿ वि० १४६ अथ जयमाला दोहा -- थावर शब्द विषय धरै त्रस थावर पर्याय । यो न होय तो तुम सुगुरण, हम किहविधि वरर्णाय ॥१॥ तिसपर जो कछु कहत हैं, केवल भक्ति प्रमान । बालक जल शशिबिबको, चहत ग्रहरण निज पान ॥२॥ पद्धडी छन्द । जय पर निमित्त व्यवहार त्याग, पायो निज शुद्ध स्वरूप भाग । जय जग पालन विन जगत देव, जय दयाभाव विन शांतिभेव ॥१॥ परसुख दुखकररण कुरीति टार, परसुख दुख कारण शक्ति धार । फुनिफुनि नव नव नित जन्मरीत, बिन सर्वलोक व्यापी पुनीत ॥२॥ जय लीला रास विलास नाश, स्वाभाविक निजपद रमरण वास । शयनासन आदि क्रिया कलाप, तज सुखी सदा शिवरूप आप ॥३॥ विन कामदाह नहिं नार भोग, निरद्वंद निजानंद मगन योग । वरमाल श्रादि श्रृंगार रूप, विन शुद्ध निरंजन पद अनूप ॥४॥ सप्तमी पूज An *&
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy