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________________ सिद्ध० वि० १४८ निजकर निजमे वास, सर्व लोकसो भिन्नता । पायो शिव सुख रास, नमत, सदा भव भय हरू ॥२५३॥ ॐ ह्री लोकाग्रस्थिताय नमः अध्यं । · ज्ञान - भानकी जोति, व्यापक लोकालोकमे । दर्शन विन उद्योग, नमत सदा भव भय हरू ॥२५४॥ ॐ ह्री लोकालोक व्यापकाय नम अर्घ्यं । जो कुछ धरत विशेष, सब ही सब प्रानन्दमय । लेश न भाव कलेश, नमूं सदा भव भय हरू ॥२५५॥ ॐ ह्री आनन्द विधानाय नमः श्रध्यं । जिस श्रानन्दको पार, पावत नहिं यह जगतजन । सो पायो हितकार, नमत सदा भव भय हरू ॥२५६॥ दोहा -- इत्यादिक श्रानन्द गुरण, धारत सिद्ध अनन्त । तिन पद आठो दरवसों, पूजत हो निज सन्त ॥ ॐ ह्री आनन्द पूर्णाय नमः अयं । 2604 पूजा १४८
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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