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________________ बहु राशि नभोदरमें समाय, प्रत्यक्ष स्थूल ताकों न पाय । इकसों इककों बाधा न होहि, सूक्षम अविकाशी नमों सोहि ॥२१६॥ ॐ ह्री सूक्ष्मावकाशाय नम अयं । नभ गुण ध्वनि हो यह जोग नाहि,हो जिसो गुणी गुण तिसो ताहिं। . सो राजत हो सूक्षम स्वरूप, नमहूँ तुम सूक्षम गुण अनूप ॥२१७॥ ॐ ह्री पूक्ष्मगुणाय नमः अध्यं । तुम त्याग द्वतताको प्रसंग, पायौ एकाकी छबि अभंग। जाको कबहूँ अनुभव न होय, नमू परम रूप है गुप्त सोय ॥२१॥ * ॐ ह्री परमरूपगुप्ताय नम. अध्यं ।। छंदत्रोटक-सर्वार्थविमानिक देव तथा, मन इन्द्रिय भोगन शक्ति यथा इनके सुखको इक सीम सही, तुम आनंदको पर अन्त नहीं ॥२१॥ ॐ ह्री निरवधिसुखाय नमः अयं । ' जग जीवनिको नहिं भाग्य यहै, निज शक्ति उदय करि व्यक्ति लहै। तुम पूरण क्षायक भाव लहो, इम अन्त विना गुरगरास गहो ॥२२०॥ षष्ठम पूजा १४० ॐही निरवधिगुणाय नम. अध्य।
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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