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________________ सिद्ध वि० १३ . निर्विकार निर्मल निजभाष, नित्य प्रकाश अमन्द प्रभाव । अव्यय अविनाशी अभिराम, शाश्वत रूप नम् सुखधाम ॥२११॥ ॐ ह्री शाश्वतप्रकाशाय नमः अध्यं ।। निरावरण रवि बिम्ब समान, नित्य उद्योत धरोनिज ज्ञान । अब्यय अविनाशी अभिराम, शाश्वत रूप नमसुखधाम ॥२१२।। ॐ ह्री शाश्वतोद्योताय नम. अध्यं । ज्ञानानन्द सुधाकर चन्द्र, सोहत पूरण ज्योति अमन्द । अव्यय अविनाशी अभिराम, शाश्वत रूप नम सुखधाम ॥२१३॥ ॐ ह्री शाश्वतामृतचन्द्राय नम. अयं । ज्ञानानन्द सुधारस धार, निरविच्छेद अभेद अपार । अव्यय अविनाशी अभिराम, शाश्वत रूप नमू सुखधाम ॥२१४॥ __ॐ ह्री शाश्वतप्रमूर्तये नम अयं । पण्डम पद्धड़ी छंद-मन इन्द्रिय ज्ञान न पाय जेह, है सूक्षम नाम सरूप तेह । " मनपर्यय जाकूनाहिं पाय,सो सूक्षम परम सुगुण नमाय ॥२१५॥ १३६ - ॐ ह्री परमसूक्ष्माय नम. अर्घ्य ।
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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