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सिद्ध
सरवोत्तम लौकीक रस, सुधा कुरस सब त्याग । निज पद परमामृत रसिक, नमू चरण बड़भाग ॥२०१॥
__ॐ ह्री परमामृतरताय नमः अध्यं ।। विषयामृत विषसम अरुचि, अरस अशुभ असुहान । जान निजानन्द परमरस, तुष्ट सिद्ध भगवान ॥२०२॥
___ ह्री परमामृततुष्टाय नमः अयं । शंकातीत अतीतसो, धरे प्रीति निज मांहि । अमल हिये संतनि प्रिये, परम प्रीति नमूताहि ॥२०३॥
ॐ ह्री परमप्रीताय नम अध्यं । अक्षय आनन्द भाव युत, नित हितकार मनोग । सज्जन चित वल्लभ परम, दुर्जन दुर्लभ योग ॥२०४॥
ॐ ह्री परमवल्लभयोगाय नम अध्यं । शब्द गन्धरसफरश नहिं, नहीं वरण आकार । ' बुद्धि गहै नहिं पार तुम, गुप्त भाव निरधार ॥२०॥
rannnur
पष्ठम पूजा
ॐली अव्यक्तभावाय नमः अध्य। -