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________________ वि० अनंता स्वभावा, विशेषन उपावा। धरोआपसोई, नमूमान खोई ॥१६॥ अनन्तस्वभावाय नम अयं । पून विनाकाररूपा यहचिन्मयस्वरूपा। धरोप्रापसोई,नमूमानखोई ॥१६॥ ___ॐ ह्री चिन्मयस्वरूपाय नमः अध्यं ।। सदा चेतनामे, न हो अन्यतामें । धरो आप सोई,नमूमानखोई ॥१६७। ॐ ही चिद्र पाय नमः अध्यं । दोहा--जो कुछ भाव विशेष हैं, सब चिद्र पी धर्म । असाधारण पूरण भये, नमत नशे सब कर्म ॥१६॥ ___ॐ ह्री चिद्रूपधर्माय नम अध्यं । परकृति व्याधिविनाशके, निज अनुभव को प्राप्त । भई, नमू तिनको, लहूँ, यह जगवास समाप्त ॥१६॥ ॐ ह्री स्वानुभवोपलब्धिरमाय नम अयं । निरावरण निज ज्ञान करि, निज अनुभव की डोर । गहो लहो थिरता रहो, रमण ठोर नहीं और ॥२०॥ ॐ ह्री स्वानुभूतरताय नम. अध्यं । षष्ठम्
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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