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________________ ॐ ह्री वादरनामकर्मरहिताय नम अध्यं । 3 जलसो दवसो नहीं आप मरै, सब ठौर रहै परको न हरै। वि। यह सूक्षम कर्म सिद्धांत भनो, जग पूज्य भये तिस मूल हनो॥१२७॥ ॐ ह्री सूक्ष्मनामकर्मरहिताय नम अध्यं । " जिसते परिप्रणता करि है, निज शक्ति समान उदय धरि है। पर्याप्त सुकर्म सिद्धांत भनो, जग पूज्य भये तिस मूल हनो ॥१२८॥ ____ॐ ह्री पर्याप्तकर्मरहिताय नम अध्यं ।' । परिपूरणता नहिं धार सके, यह होत सभी साधारण के। । अपरयापति कर्म सिद्धांत भनो, जग पूज्य भये तसु मूल हनो॥१२६॥ ___ ॐ ह्री अपर्याप्तकर्मरहिताय नम अयं । ' जिम लोह न भार धरै तनमे, जिम आकन फूल उड़े बनमे। है अगुरुलघु यह भेद भनो, जग पूज्य भये तसु मूल हनो ॥१३०॥ ॐ ह्री प्रगुरुलघुकर्मरहिनाय नमः अध्यं । षष्ठम इक देह विर्ष इक जीव रहै, इकलो तिसको सब भोग लहै। परतेक सुकर्म सिद्धांत भनो, जग पूज्य भये तसु मूल हनो ॥१३१॥ ३१२१ mraumaunawwaman
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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