SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिद्ध वि० १२० ------ -- ह्रो उद्योतनामकर्मरहिताय नम. अयं । तनकी थिति कारण स्वास गहै, स्वर अन्तर बाहर भेद वहै । यह स्वास सुकर्म सिद्धांत भनो, जग पूज्य भये तसु मूल हनो॥१२२॥ ॐ ह्री स्वासकर्मरहिताय नमः अध्यं । शुभ चाल चलै अपनी जिसमे, शशिज्यो नभ सोहत है तिसमें। नभमे गति कर्म सिद्धांत भनो, जग पूज्य भये तिस मूल हनो॥१२३॥ ॐ ह्री विहायोगतिकर्मविमुक्ताय नम अयं । इक इन्द्रिय जात विरोध मई, चतुरांति सुभावक प्राप्त भई । त्रस नाम सुकर्म सिद्धांत भनो, जग पूज्य भये तिस मूल हनो ॥१२४॥ ॐ ह्री त्रसनामकर्मविमुक्ताय नम अध्यं । इक इन्द्रिय जातहि पावत है, अरु शेष न ताहि धरावत है। यह थावर कर्म सिद्धांत भनो, जग पूज्य भये तिस मूल हनो॥१२॥ ॐ ह्री थावरनामकर्मरहिताय नम अध्यं । परमे परवेश न आप करै, परको निजमे नहिं थाप धरै। यह बादर कर्म सिद्धांत भनो, जग पूज्य भये तिस मूल हनो ॥१२६॥ षष्ठम पूजा १२०
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy