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________________ वि. ११५ केवल नसासों होय बेढी, मॉससों लतपत रही। अंतिम स्फाटिक संहनन यह, हीन शक्ति प्रसार हो, सिद्ध०२ यह त्याग बंध प्रबंध निवसो परम आनंद धार हो॥६३॥ * ही स्फटिकसहननरहिताय नम' अर्घ्य । दोहा-वर्ण विशेष न स्वेत है, नामकर्म तन धार । स्वच्छ स्वरूपी हो नमू, ताहि कर्मरज टार ॥६४॥ ___ॐ ह्री स्वेतनामकर्मरहिताय नम' अध्यं । वर्ण विशेष न पीत है, नामकर्म तन धार ॥स्वच्छ०॥६॥ ॐ ह्री पीतनामकर्मरहिताय नम अध्यं । वर्ण विशेष न रक्त है, नामकर्म तन धार ॥स्वच्छ०॥६६॥ ॐ ह्री रक्तनामकर्मरहिताय नम अयं । वर्ण विशेष न हरित है, नामकर्म तन धार ॥स्वच्छ०॥६७॥ ॐ ह्री हरितनामकर्मरहिताय नम अयं । गंध विशेष न कृष्ण है, नामकर्म तन धार ॥स्वच्छ०॥६॥ ॐ ह्री कृष्णनामकर्मरहिताय नमः मयं । गंध विशेष न शुभ कहो, नामकर्म तन धार ॥स्वच्छ०॥६॥ पचम m
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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