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________________ urungRPUTUPure न सिद्ध या विन लहो, परम शांति सुख बोध ॥६४॥ " ॐ ह्री नानुमोदितवचनक्रोधसमारभपरमशाताय नम. अयं । छन्द मोतियादाम। वैर वचयोग धरै जियरोष, करै विधि भेद अरम्भ सदोष । तजो यह सिद्ध भये सुखकार, नमूपरमामृत तुष्ट अवार ॥६५॥ ॐ ह्री अकृतवचनक्रोधारम्भपरमामृततुष्टाय नम अध्यं । ' श्रकारित बैन सदा युत क्रोध, महा दुखकार अरम्भ अबोध । भये समरूप महारस धार, नमै हम सिद्ध लहै भवपार ॥६६॥ ॐ ह्री अकारितवचनक्रोधारम्भसमरसाय नम. अध्यं । दोहा-नानुमोद प्रारम्भमे, क्रोध सहित वच द्वार। परम प्रीति निज आत्मरति, नमसिद्ध सुखकार ॥६७॥ ॐ ह्री नानुमोदिनवचनकोधारभपरमप्रीतये नमः अध्यं ।। पचम अडिल्ल। पूजा इवचन द्वार संरम्भ मानयुत जे करै, जोड़ करन उपकरण मानसो ऊचरै ७२ नानाविधिदुखभोग निजातमको हरै, नमूसिद्ध या विन अविनश्वर पदधरै
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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