SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिद्ध वि. ७० ॐ ह्री प्रकारितमनो-लोभसमारभ-अनाकाराय नमः अध्यं । ऐसे ही पूर्वोक्त विधि, हर्षित होवे नाहि । चित्सरूप साकारपद, धारत हूँ उरमाहिं ॥५॥ ___ॐ ह्री नानुमोदितमनो लोभसमारम्भसाकाराय नम. अयं । रचना हिंसा काजकी, लोभी मनके द्वार।। नहीं करै है ते नमू, चिदानंद पद सार ॥५६॥ ॐ ह्री अकृतमनोलोभारभचिदानन्दाय नमः अध्यं । लोभी मन प्रेरित नहीं, परको प्रारंभ हेत। चिन्मय रूपी पद धरै, नम लहूँ निज खेत ॥५७॥ ___ ह्री अकारितमनोलोभारम्भचिन्मयस्वरूपाय नमः अध्यं । मन लोभी आरंभमें, प्रानन्द लहे न लेश । निजपदमें नित रमत है, ध्याऊं भक्ति विशेष ॥५॥ ॐ ह्री नानुमोदितमनोलोभारंभस्वरूपाय नमः अयं । अडिल्ल छन्द । क्रोधित जिय वचयोग द्वार उपयोगको,रचनाविधिसंकल्पनाम समरंभ सौ पचम ७० -
SR No.010799
Book TitleSiddhachakra Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy