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________________ | लाभगचेयग भोगी जाए उ छणो सुवाहितुल्लो त्ति । मरणे दुक्खमवेक्खा किमिह दरिदोवि परलोए ९५७ | रायणित्रेयण दंसण तोसो पियवयण पुच्छ पसिणत्थे । णमणमणुण्णा संवेगसाहणं भावसारमिमं ॥ ९५८ ॥ धम्मकरणेण भोगी लाभा इहरा उ तुच्छभोगोत्ति । रज्जफलोत्ति सुवाही तच्छणसरिसो उ एएसु ॥ ९५९ ॥ मालालुगप्प भोगाइ णायओ दुक्खकारणमविक्खा | धम्मी दरिदगो इह अओष्णहण्णोवि परलोए९६०॥ मायापिउणा भणिओ इह धम्मण्णू तुमं तहावम्हं । ठिइमूयत्तेहिं इह दुखं कुणसित्ति सो आह ॥ ९६९ ॥ | गंतवं सगईए गुरुयण संबुढिकारयं गच्छे । आसासमाइदीवगजोगम्मि ण अण्णा जुत्तं ॥ ९६२ ॥ वोछेमि य जं उचियं इहरा उ ण जुत्तमेव वोतुं जे । जं इह एस कुहाडी जीहा धम्मेयरतरूणं ॥ ९६३ ॥ एवं ति तेसिं बोहो धम्मपरिच्छाए पायसो णवरं । माइपिइयघायाणमित्थ किं जुत्तमच्चत्थं ॥ ९६४ ॥ | पूजत्ति आहु पायं अण्णेऽणेगंतवायओ तत्तं । ववहारणिच्छएहिं दुविहा एए जओ या ॥ ९६५ ॥ यवहारओ पसिद्धा तिण्हा माणो य णिच्छएणेए । आइमगाणं पूया इयरेसिं वहोत्ति ता जुत्तं ॥ ९६६ ॥ बज्झेयरचिट्ठाणं अण्णे का सोहणत्ति आहेसो । अण्णयरावोहेणं उभयं भेयाओ एयस्स ॥ ९६७ ॥
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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