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________________ सुबइ निवस्स पत्ती झाणग्गहसंगया विणीयति। मुभिजमगकपणतुलनालणिवोगात नारी का ध्यते निशम्यते प्रयपने गुणस्य पार्थिवरण करणनित पाली गागा ध्यान चित्तत्तिनिपतविgi arthakal मंगता समेता सती विनीता मार्गयोगिता, इत्येवं लक्ष्यमाणोण । तथापिकाको तिमाला नियोतिtil जपो नृपश्च राजा, विनीत इति प्रकृतेन सम्पन्धः, राधेति राजावापानी, पूर(शिरतनाना ॥५॥ 8 तथायं दृष्टान्तं भावयन गाथानवकमाह:--- णिवपत्ती णिविण्णा झाणा मोक्खो त्ति तग्गहसगेया।रारारमगजमगजमोतिणणदेवमिनिमनिता। 1/तवखीणसाहुदंसण वहुमाणा सेवणा तहा पुच्छा। शाणे दलगकणे जज पनि impro.] गीयणिवेयणमागमज्झाणकहभुवगमे तह रखेषो। कोई विदुरपनेरा पगिगाई जा देवा ॥१॥ निचलचित्ता साहण समओ नपणेसिं आम पनिणे। तातरि गवसकाला गारात ससरक्खविजमादि न तत्त तह दसणा विगप्पोति । शंकाए गुरु रामा वितलिया इहरा एवं चिय छत्तरयणपरिच्छित्तितुल्ठमो भणियं । पारण विगागूगंराविनियमालरानि ॥ पत्तीण रयणसारं आहरणं सिरिफलंति सोत्तूणं । आईग तप्परिच्छालग्गो को नतो गावा ॥१॥ RECCCCCCCCX
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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