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________________ गगम्मि करंडियाए तुह तंवगमईए॥ ६५ ॥ अंतो मए चिय कओ निरिक्खणिजोत्व पट्टओ तमए । जं तत्थ किंचि भणियं न कहिंचि पयासणिजं तं ॥६६॥ केवलमिहत्तकज्जं अइनिउणमणेणणट्रिययं तं । एवं कयम्मि एयम्मि ते सिरी सागो होही ॥ ६७ ।। दइ मुमरियपिउवयणो केणावि अलक्खमाणओ संतो। एगंतम्मि विहाडिय समुग्गयं लेइ तं पट्टे ॥ ६८ ॥ लिहियं च तत्थ दीवे गोयमनामम्मि रयणतिणचारी । सघत्थ अत्थि तं किल सुरहीवग्गो तहिं चरइ ॥६९॥ इह देमाओ उपकुरुडिगाए खत्तमि णीणिए तत्य । निक्खित्तम्मि पएसे तहिं २ उसिणफासस्स ॥७॥ लोभेण निसाममय तत्वोइण्णामो तागो मुंचंति । गोमयमहुव्भडेणं जलणेणं जालिए तम्मि ॥ ७१॥ रयणाई अणग्याई हुंति पंचप्पयारवण्णाई । इय नायपट्टयत्थो अह सो एवं विचिंतेइ ॥ ७२ ॥ हियकारिणा परेणवि न वुद्धिमंतेण भासियं चलइ । किं पुण पिउणा निउणेण मज्झ एगंतभत्तेण ॥ ७३ ॥ कज्जपरमत्थमेवं विणिच्छिउं घोसए नगरमज्झे। बुद्धी ममथि। पिउला विहयो पुण नत्थि किं काहं ॥ ७४ ॥ एवं पहतियचच्चरदेसेसु भणंतओ भमंतो य । खीणविहवोत्ति लोगेण कप्पिाओवाउलो एस ॥ ७५ ॥ निसुयं रन्ना तन्नगरसामिणा कोउगं तओ जायं । सद्दाविओ निउत्तो विभवग्गहणम्मि पजंते ॥ ७६ ॥ दीणारलक्समेगं गहियं मुकं च किंचि गहिलत्तं । गोयमदीवपहण्णू गहिओ निजामगो एगो ॥ ७७ ॥ भरियाई || पवहणाई गामागरनगरकयवरस्स तओ। भणइ जणो को गहिलो नरवई एयाण मज्झम्मि ॥ ७८ ॥ जो एवं देइ धणं एयस्म निओयणे कयवरं च। जो गेण्हइ परतीरे ववहारकए कयपणामो॥७९॥ अवहीरियइयरजणो खेमेण गओ स तत्थ दीवम्मि । अणुचिटिओ य सबो अत्यो जो पट्टए लिहिओ॥ ८० ॥ दिवाओ गावीओ बहुगोमयगहणमह पबह PSESSAISESEISLIGAILOS
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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