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श्रीउपदेशपदे
॥ २७३ ॥
दिट्ठो गिहंगणगओ भज्जाए कसुगे पए दिंतो । णायमणेणं निल्लक्खणेण णूणं हयं कज्जं ॥ ५० ॥ पुट्ठो किं सो लद्धो झुंटओ आममह कहिं मुको । वाहिं भणियमणाए अभग्गसिरसेहरो तं सि ॥ ५१ ॥ तक्खणमेव निउत्ता सा तेण तयाणणत्थमह भइ । पवणंतरेहिं पुट्ठो णूणं इण्हि मओ होही ॥ ५२ ॥ सा तुरियपयपयारा तत्थ गया जा निभालए ताव । दो तह चि इमो विच्छायतणूरुहभरो य ॥ ५३ ॥ विहियं रोमुद्धरणं तुच्छफलो कंबलो तहिं जाओ । मग्गंतेणवि लद्धो न उणो अन्नो ससुरगेहे ॥ ५४ ॥ सोमे ! झुंटणतुल्लो सुद्धो धम्मो इमम्मि गहियम्मि । उवहसणपरो होही तव सयणजणो, परिच्चाए ॥ ५५ ॥ एयस्स फलं तुच्छं पुणो अलाहो इहं परभवे य । एयारिसाण तम्हा नो दायवो इमो धम्मो ॥ ५६ ॥ तेसिं चैव हियकए अन्नह अइगाढरोगविहुराणं । ओसहदाणमकाले जहा तहाणिट्ठफलहेऊ ॥ ५७ ॥ इय सिरीमईए भणिए सोमा सोमव रुइरमुहसोहा । भणइ न सबे पाणी नियमेण हवंति एरिसगा ॥ ५८ ॥ जलहिजलगहिरबु|द्धी होंति केई सुनिच्चला कज्जे । सुरसेलोव अमन्नियवालिसजणपेलवालावा ॥ ५९ ॥ णाणाविहेसु अक्खाणए कुसला किं सु न त । गोवरवणिओ अवहेरितप्परो मुक्खभणिएसु ॥ ६० ॥ तो सिरिमईए भणियं भणसु तुमं केरिसो satara | वालिसजणाण वयणं अवगणियं जेण नियकज्जे ? ॥ ६१ ॥ सोमाह समत्थि पुरी विस्सउरी नाम सधणजणकलिया । तत्थ सुविढत्तवित्तो दत्तो नाम इव्भओ आसि ॥ ६२ ॥ पुण्णपरिहाणिदोसा कालेण दरिद्द भावमणुपत्तो । सययमसंपज्जं ते मणोरहे सो विचिंतेइ ॥ ६३ ॥ को नाम किल उवाओ स होज्ज जत्तो पुणोवि विभवपहु । होहामि, सुमरियं वयणमप्पणो तेण जणयस्स ॥ ६४ ॥ जइ पुत्त ! कहवि विहवो न होज्ज तो निविडमज्झभागम्मि | कट्ठ समु
श्रीमती - सोमाहर
णप्र०
॥ २७३ ॥