SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 26-06 | कमवि कुमरो निद्दामुको पवियंभमाणतणू ॥ ३१२ ॥ जाव निभालेइ दिसंतराई नो ताव वरघणुं नियइ । परिभावियं जलट्ठा इओ तओ होहि गउत्ति ॥ ३१३ ॥ नवजलयगहिरघोसेण तेण सद्दो करेत्तुमारद्धो ( ग्रंथाग्रं ५०० ) । पडिवयणमलभमाणेण कहवि दिट्ठं रहस्स धुरं ॥ ३२४ ॥ अइवहलरुहिरधारालित्तं संजायसंभमो ताहे । वावाइओ वरघणू णूणंति विगप्पिउं पडिओ ॥ ३१५ ॥ तस्स रहस्मुच्छंगे निरुद्धसबंगचेयणो धणियं । रयणवईए सीयलजलपवणासासिओ संतो ॥ ३१६ ॥ उम्मीलियचेयण्णो हा हा भाय ! त्ति रोविडं लग्गो । रयणवईए कहकहवि उवरमो रोयणस्स कओ ॥ ३१७ ॥ सा तेण तओ भणिया सुंदरि ! नज्जइ फुडं न किंचि जओ । किं वरघणू मओ जीवइत्ति ता तस्स दुतं ॥ ३१८ ॥ उवलद्धुं जुत्तं गमणमिहि पच्छामुहस्स मे सुयणु ! | भणियमिमीए रणे इमम्मि बहुसावया इग्णे ॥ ३१९ ॥ | कह मंसपेसिसरिसं बहुसामण्णं विमुत्तुं जियनाह ! । इच्छसि ममं तुमं, तह नियडे च्चिय वट्टए वसिमं ॥ ३२० ॥ जेण | कुसकंटयाई जणचलणविलोलिया इह पएसे । दीसंति तत्थ गम्मउ तत्तो जुत्तं करेज तुमं ॥ ३२१ ॥ तत्तो लग्गो गंतु | मगहाभिमुहं ठियम्मि संघीए । विसयस्स गओ गामे एक्कम्मि स, भाविएण तहिं ॥ ३२२ ॥ गामपहुणा विलोइय रूवं तरस परिभावियं मणसा । एस महप्पा दिवस्स वसगओ कोवि एगागी ॥ ३२३ ॥ पडिवन्नो बहुगउरवमाणीओ नियघरे सुहासण्णो । पुट्ठो जहा महाभाग ! किं समुविग्गचित्तो सि १ ॥ ३२४ ॥ परिफुसियनयणसलिलो सो भणइ महं सहोयरो | लहुओ । चोरेहिं समं भंडणमाढत्तो काउमह तत्थ ॥ ३२५ ॥ पत्तो किमवत्थंतरमेत्तो तस्सा गवेसणं काउं । तबमत्थि भणियं तेण तओ गामपहुणेवं ॥ ३२६ ॥ मा एत्थ कुणसु खेयं जइ वणगहणे इमम्मि सो होही । तं लहिही धुवं
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy