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________________ श्रीउपदे- जो दिवो ॥ २९६ ॥ बुद्धिल-सायरदत्ताण संतिए माणसम्मि तुह रमिही । सो बंभदत्तनामा तह कुक्कुडजुज्झकालाओ १चोलकवपदे ॥२९७ ॥ जं किंचि तुज्झ वित्तं वरधणुणा संगयस्स तं कहियं । तह हारपेसणाइवि किच्चं विहियं मए तुम्ह ॥२९८ ॥ निदर्शनम्. इय निसुणियबुत्तंतो मह रक्खाए कयादरा एसा । कहमन्नहा रहवरो सपहरणो मज्झ उवणीओ? ॥ २९९ ॥ इय परि॥१४॥ भाविय तीए दूरं रत्तो रहं तमारूढो । नाया जह रयणवई एसा पुट्ठा कओहुत्तं ॥ ३००॥ गंतवमिमीए भणियमस्थि M मगहापुरम्मि मह पिउणो । भाया धणाभिहाणो कणिट्ठगो सेट्ठिपयपत्तो ॥ ३०१॥ विनायवइयरो सो तुम्हें मज्झ य परम्मि संतोसे । वदंतो गउरवमायरेण परमं विहेहि त्ति ॥ ३०२॥ ता तत्थ गमो कीरउ तदुत्तरं तुम्ह रुच्चए जंतं। कुणसु त्ति पयट्टो तस्स संमुहो गंतुमह कुमरो ॥ ३०३ ॥ विहिओ सारहिभावो वरधणुणा तो कमेण गच्छंतो । कोसंविजणवयाओ विणिग्गओऽणेगदुग्गाओ ॥ ३०४ ॥ पत्तो गिरिगहणंतरमेगं तरुसिहरहरियसूरकरं । कंटयसुकंटया नाम तत्थ चोराण महिवइणो ॥ ३०५॥ निवसंति, पहाणरहं महिलारयणं च भूसियसरीरं । दळूणमप्पपरियरलोयं कुमरं च* र तो लग्गा ॥ ३०६॥ संनद्धबद्धकवया उप्पीलियधणुहपट्टिया होउं । नवनीरवाहधारासरिसं सरवरिसणं काउं॥३०७॥ - कुमरेणवि धीरिममंदिरेण किंचिवि अक्खुन्भमाणेण । हरिणब हरिणगा तक्खणेण ते हारिमाणीया ॥ ३०८ ॥ निवडं तछत्तचिंधा णाणाउहघायघुम्मिरसरीरा। जाया पलायमाणा दिसोदिसि निष्फलारंभा ॥ ३०९ ॥ तत्तो तमेव रहवरमारूढो जाव जाइ वरधणुणा । भणिओ कुमरो परिसममसमं तं पाविओ इण्हि ॥ ३१॥ ता निदासुहमेगं मुहत्तमु ॥१४॥ * वलंभ रहवरे एत्थं । सुत्तो रयणवईए सहेव अइनेहभरियाए ॥ ३११ ॥ एत्थंतरम्मि गिरिनइमेगं पावित्तु रहहया थक्का ।
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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