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________________ 5 भणइ कुमर! को मुणाइ एयवुत्तंतपरमत्यं ॥ २५१ ॥ ज तुम्हसरिसनामा संति अणेगे नरा महीवलए । एवं पडिहयवयणो कुमरो तो मोणमहीणो ॥ २५२ ॥ वरधणुणावि स लेहो विहाडिओ पेहिया तहिं गाहा । अइतिववम्महुम्माहकारिया एयरूवत्ति ।। २५३ ॥ जहा;-पत्थिजइ जइ हियए जणेण संजोयजणियजत्तेण। तहवि तुम चिय धणियं रयणवई महइ माणे ॥२५४॥ वरधणुणो चिंतासंगयस्स कहमेयलेहभावत्थो। णाययो, वीयदिणे पबइगा आगया एगा॥२५५॥ कुमरस्स सिरे कुसुमे तहक्खए निक्खियेइ भणई य । पुत्तय ! वाससहस्सं जीवसु तो वरधणुं नेइ ॥ २५६ ॥ एगते तेण समं किंचिवि सा मंति झडित्ति गया। तो पुच्छई कुमारो वरधणुमेयाइ किं कहियं? ॥२५७ ॥ ईसीसिहसिरवयणो तो माहइ वरधणू जहा एसा । पवइया पडिलेहं मं मग्गइ तस्स लेहस्स ॥ २५८ ॥ भणियं मए जहेसो लेहो निववंभ-॥४ दत्तनामंको। दीसइ ता कहसु तुमं को एसो वंभदत्तो त्ति? ॥२५९ ॥ भणियं तीए सुण सोम! किंतु न तए पयासियपमिमं । अस्थि इहेव पुरवरे रयणवई सेद्विणो धूया ॥२६०॥ सा वालकालो चिय मइ निद्धा जोवणं समणुपत्ता। तिजगजउजयवम्महभिलस्स महल्लभल्लिसमं ॥ २६१॥ दिट्टा दिणम्मि अन्नम्मि सा मए किंचि किंचि झायंती। पल्हथियगंडयला वामे करपल्लवे विमणा ॥ २६२ ॥ तीइ समीवं गंतुं पण्णत्ता सा मए जहा पुत्ति। । चिंतासायरलहरीहिं हीरमाणव तं भासि ॥ २६३ ॥ तो परियणेण भणियं वहूणि दिवसाणि एवमेईए । विमणुम्मणा य पुट्टा पुणो पुणो जाव न कहेइ ।। २६४ ॥ भणियं तस्स सहीए पियंगुलइयाइ भगवइ! जहेसा । लज्जती तुज्झ न किंपि अक्खि स कमपि जए। ॐॐकर उ.प.म.३
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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