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________________ रमरकरवाकर मवित्थरो गरुणा । भणइ जणोऽमरसोहग्गमग्गलं न उण रूवं पि ॥ २८९॥ जइ नाम रूवलच्छी हंता एयरस तान तियलोए। असुरो सुरो व विज्जाहरो व इमिणा समो होजा॥२९॥ भयवं नाऊण सभाए माणसं तक्खणा विउघे। पउमं सहस्सपत्तं कंचणमयमुज्जलुजोयं ॥ २९१ ॥ तस्सोवरि निविट्ठो विज्जुपुंजोब संतियं रूवं । निम्मवइ मईवं सो निम्मललायण्णसलिलनिहिं ।। २९२ ॥ आउट्टो भणइ जणो रूवं साभावियं इमस्स इमं । इत्थिजणपत्थणिज्जो मा होमिन दंसियं पढमं ॥ २९३ ॥ भणियं भूवइणावि य अहो! इमरसेरिसो अइसउत्ति । ताहे अणगारगुणे इमेरिसे पन्नवह तस्स ॥ २९४ ॥ तवगुणओ अणगारा जंबुद्दीवाइए असंखेजे । भरिए कुणंति वेउधियाण रूवाण इय सत्ती ॥२९५॥ ज होइ ता किमेयं अच्चन्भुयमेत्थ तुम्ह पडिहाइ । एत्थंतरम्मि धणनामसेट्ठिणा भासिओ सामी ॥ २९६ ॥ तं निन्जियजगरूपो एसा वि य महिलियाण सबाण । मम धूया धुणइ धुवं सोहग्गमडप्फरमणग्घं ॥ २९७ ॥ ता कुण पाणिग्गहणं जिमुचियकमवत्तिणो महामइणो । होति तओ सो विसए विसोवमे कहिउमाढत्तो॥ २९८ ॥ जहा ॥ विसया विसंव विसमा विसया विडिसामिसं व मरणकरा । विसया सेविजंता छलवहुला तह मसाणं व ॥ २९९ ॥ निसियग्गखग्गपंजरघरं व सवंगछेइणो विसया। किंपागपागसरिसा विसया मुहमहरभावेण ॥ ३०॥ खणदिवा खणनट्ठा खलजणमणभीलणोवमा विसया। किं वहुणा सबेसि विसया मूलं अणत्थाणं ॥ ३०१॥ एईए जइ पओअणमस्थि मम ते तओ वयं लेउ। अइविच्छअसणाहा पधज्जा तीए पडिवण्णा ॥ ३०२॥ भयवं पयाणुसारी अज्झयणाओ महापरिपणाओ। रा. समुचिय। म
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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