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________________ +ACTICAGACASSACRICA सो तं पलोयमाणो अच्छड़ जाणइ य जइ इमं संघं । अवमन्नामि सुदीहं तो संसारं परिभमामि ॥ १६७ ॥ एसावि य| पपलं मद पवइयम्मि नियमओ काही । इय चिंतंतो तीए वारतिगं सदिओ नेइ ॥ १६८ ॥ भणिओ जणएण तओ रयहरणं नियकरे धरेत्तूण । कमलदलामललोयणजुयलो ससिमंडलमुहो य॥१६९ ॥ जहा ॥ जइ सुकयज्झवसाओ धम्मग्झयमूसियं इमं वइर! । गेण्ह लहं रयहरणं कम्मरयपमजणं धीर!॥ १७॥ तृरियमणेणं गंतुं गहियं लोगेण ४ाजयइ धम्मोत्ति । उकिट्ठसीहनाओ कओ तओ चिंतए जणणी ॥१७१॥ मम भत्ता पुत्तो भाउओ य एए पवनपधज्जा। कस्स कए गिहवासे वसामि तो सावि पवइया ॥ १७२ ॥ परिवज्जियथणपाणा दवेणवि समणओ स संजाओ। अजवि विहारकिरियाणुचिओ सो साहुणीपासे ॥ १७३ ॥ ठविओ पुणरवि तासिं समीवओ सो सुणेइ अंगाई । एक्कारसवि पढं3/तीण ताण तेणेव लद्धाणि ॥ १७४ ॥ एगपयाओ पयसयमणुसरइ मई तहा सया तस्स । जाओ य अट्ठवरिसो ठविओ गुरुणा नियसमीये ॥ १७५ ॥ विहरंता उज्जेणिं गया ठिया वाहिरम्मि उज्जाणे । कइयावि तिवधारं सुदुन्निवारं पडइ वासं ॥ १७६ ॥ भिक्खायरियाइपओयणाई न तरंति साहुणो काउं । जा ता जंभगदेवा वइरस्स परिच्चिया पुवं ॥१७७॥ जाया कहिंचि तद्देसचारिणो पेच्छिऊण सो ज्झत्ति । परियाणिओऽणुकंपा भत्तीवि य तम्मि संजाया ॥ १७८ ॥ तप्प|रिणामपरिक्खाहेउं ताहे भवित्त वाणियगा। सत्थवइले तद्देसभूमिभागे निवेसंति ॥ १७९॥ संसिद्धभत्तपाणाण ताहे ते इरमुनगं पणया । आमंति ते पयट्टो गुरुणो आमंतिओ संतो॥ १८०॥ मंद मंदं वासं पडिइत्ति नियर जाववियं सहाविति ताव विहियायरा दूरं ॥ १८१ ॥ वइरोवि गओ ताहे तसं कुणइ तिवमुवओगं। दवाइगोयरं तत्थ ।
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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