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________________ शपदे श्रीवज्रस्वामिचरितम् श्रीउपदे ताव सूरिणा भणियं । अबो किं वइरमिमं जं भारियभावमुबहइ ॥ १५१॥ जा पेच्छइ सुरकुमरोवमाणमेयं सविम्हओ भणइ । सारक्खह सुयमेयं जं पवयणपालगो होही ॥ १५२॥ वइरोत्ति य से नाम विहियं समणीण सो वसे विहिओ।। ताहे सेज्जायरमंदिरम्मि निहिओ तओ तत्थ ॥ १५३ ॥ जइया तच्चेडाणं ण्हाणं थणपाणमंडणाईयं । कीरइ तदा इमस्सा ॥१२१॥ 18| वि फासुएणं विहाणेणं ॥ १५४ ॥ एवं सो संवड्डइ सबेसिमईव चित्तसंतोसी । सूरी बाहिं विहरइ तं जणणी मग्गिउं लग्गा ॥१५५ ॥ निक्खेवओ इमम्हं न समप्पामो दिणे दिणे सा उ । थणपाणं कारेई एवं जाओ तिवरिसेसो ॥१५६॥ तत्थागयम्मि सूरिम्मि अह अन्नया सा विवायमारूढा । न समप्पंति जया तं ववहारो राउले जाओ॥ १५७ ॥ पुट्ठो य] धणगिरी दंडिएण सो भणइ मे सहत्थेण । दिन्नो इमीए नवरं पुरं सुनंदाए पक्खम्मि ॥१५८ ॥ रन्ना भणियं पुत्तं ६ ममं पुरो ठाविऊण उल्लवह । जं सरइ तस्स एसो पडिवन्नमिमेहिं एयंति ॥ १५९ ॥ बालजणस्सुचियाई खेल्लावणयाई णेगरूवाई। गिण्हइ जणणी सिसुलोयलोयणाणंददाईणि ॥ १६०॥ पत्ते पसत्थदिवसे दोन्निवि वग्गा उवट्ठिया निवई। 'राया पुव्वाभिमुहो दाहिणओ संठिओ संघो॥१६१॥ वामेण सुनंदा परियणेण सवेण अणुगया ठाइ । राया भणइ पमाणं तुम्हाणं अहं सुयं तेहिं ॥ १६२ ॥ जाए दिसाए एसो निमंतिओ जाति तेसिमेवेसो। धम्मो जं पुरिसवरो ता जणओ वाहरउ पुर्वि ॥ १६३ ॥ एवं भणियम्मि रन्ना नागरयजणो भणाइ कयनेहो । एसो पढम चिय एसु भणसु ता अम्बया पुर्व ॥ १५४ ॥ तह माया दुक्करकारिणित्ति अइतुच्छसत्तजुत्ता य । तो सा वसेव सेहे करिकरहे रयणमणिखविए ॥१६५ ॥ दो एत्ता कोमलभासिएहिं कारुण्णयं पदंसंती। अइदीणमुही तं वइर! एहि एत्तो इमं भणइ ॥ १६६ ॥ १२१॥
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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