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________________ देवगढके मन्दिर मूर्तियोंकी दुर्दशा ८१३ प्रकाशित करके इस विषयके आन्दोलनको खास तौरसे जन्म दिया था। उस वक्तसे कभी-कभी एकाध लेख जैनमित्रादिकमे प्रकाशित हो जाता है और उसमे प्राय: वे हो बातें आगे-पीछे अथवा संक्षिप्त करके दी हुई होती हैं जो उक्त पुस्तकमे संग्रहीत हैं । और इससे यह जाना जाता है कि देवगढ तीर्थोद्धार-फडने ग्राममें एक धर्मशाला बनवाने तथा मदिरोमे जोड़ियां चढवाने के अतिरिक्त अभी तक इस विषय में और कोई खास प्रगति नहीं की-वह मदिर-मूर्तियोके इतिहासादि-सम्बन्धमें भी कोई विशेष खोज नही कर सका और न उन सब शिलालेखोकी कापी प्राप्त करके उनका पूरा परिचय ही समाजको करा सका है जो गवर्नमेण्ट को इस क्षेत्रपरसे उपलब्ध हुए हैं और जिनमेसे १५७ का सक्षिप्त परिचय भी सरकारी रिपोर्ट में दिया हुआ बतलाया जाता है। कोई खास रिपोर्ट भी उसकी अभी तक देखनेमे नही आई । इसके सिवाय गवर्नमेण्टसे लिखा-पढी करके इस क्षेत्रको पूर्णरूपसे अपने हस्तगत करनेके लिये जो कुछ सज्जनोकी योजना हुई थी उनकी भी कोई रिपोर्ट आज तक प्रकाशित नही हुई और न यही मालूम पड़ा कि उन्होने इस विषयमे कुछ किया भी है या कि नहीं। तीर्थक्षेत्र-कमेटीने भी इस विषयमे क्या महत्वका भाग लिया है वह भी कुछ मालूम नही हो सका। हाँ, ब्रह्मवारी शीतलप्रसादजोको कुछ टिप्पणियोसे इतना आभास जरूर मिलता रहा है कि अभी तक इस दिशामे कोई खास उल्लेखनीय कार्य नही हुआ है। अस्तु, ऐसी मदगति, लापर्वाही और अव्यवस्थित रूपसे कार्य होनेकी हालतमे इस क्षेत्रके शीघ्र उद्धारको क्या आशा की जा सकती है और उस उद्धारकार्य में महायता देनेको भी किसीको क्या विशेष प्रेरणा हो सकती है।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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