SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ युगवीर-निवन्धावली प्रियतमा मदनवेगासे पूछा और मदनवेगा यथायोग्य विद्याधरोकी जातियोका इस प्रकार वर्णन करने लगी ७८ "प्रभो । ये जितने विद्याधर है वे सब आर्यजातिके विद्याधर हैं । अब मैं मातग [ अनार्य ] जातिके विद्याधरोको बतलाती | आप ध्यानपूर्वक सुने - - "नील मेघके समान श्याम नीली माला धारण किये मातग स्तभके सहारे बैठे हुए ये मातग जातिके विद्याधर हैं ॥१४- १५॥ मुर्दो की हड्डियों के भूषणोसे भूपित भस्म (राख) की रेणुओसे मटमैले और श्मशान [ स्तभ ] के सहारे बैठे हुए ये श्मशान जातिके विद्याधर हैं ||१६|| वैडूर्यमणिके समान नीले-नीले वस्त्रो - को धारण किये पांडुर स्तभके सहारे बैठे हुए ये पाडुक जातिके विद्याधर हैं ||१७|| काले-काले मृगचर्मोको ओढे, काले चमडेके वस्त्र और मालाओको धारे कालस्त भका आश्रय ले बैठे हुए ये कालश्वपाकी जातिके विद्याधर हैं || १८ || पीले वर्णके केशोसे भूषित, तप्त - सुवर्णके भूपणोके धारक श्वपाक विद्याओके स्तभके सहारे बैठनेवाले ये श्वपाक जातिके विद्याधर हैं ॥ १६ ॥ वृक्षोके पत्तोके समान हरे वस्त्रोके धारण करनेवाले, भांति-भांति के मुकुट ओर मालाओके धारक, पर्वत- स्तभका सहारा लेकर बैठे हुए ये पार्वतेय जातिके विद्याधर हैं ||२०|| जिनके भूषण वाँसके पत्तोके बने हुए हैं, जो सब ऋतुओके फूलोकी माला पहिने हुए हैं और वश - स्तभके सहारे बैठे हुए हैं वे वशालय जातिके विद्याधर हैं ||२१|| महासर्प के चिह्नोसे युक्त उत्तमोत्तम भूषणोको धारण करनेवाले वृक्षमूल नामक विशाल स्तभके सहारे बैठे हुए ये वार्क्षमूलक जातिके विद्याधर हैं ||२२|| इस प्रकार रमणी मदनवेगा द्वारा अपने-अपने वेष और चिह्नयुक्त भूषणोसे विद्याधरोका भेद जान
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy