SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 805
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्या सभी कदमूल अनतकाय होते हैं १ ७९७ एक विशेष नियम दिया है और यह बतलाया है कि जो छाल ज्यादह मोटी होती है उसे अनतकाय और जो ज्यादह पतली होती है उस छालको प्रत्येक जानना चाहिए। इससे यह पाया जाता है कि कदमूलादिक अपने सर्वांगरूपसे अनतकाय अथवा प्रत्येक नही होते, उनमे उनकी छालसे विशेष रहता है-अर्थात्, कोई कदमूलादिक ऐसे होते हैं जिनकी छाल अनतकाय होती है, परन्तु वे स्वय भीतरसे अनतकाय नही होते और कोई-कोई ऐसे भी होने हैं जो खुद भीतरसे तो अनतकाय होते हैं परन्तु उनकी छाल अनतकाय नही होती, वह प्रत्येक ही रहती है। इसके बाद गोम्मटसारमे एक अपवाद नियम और भी दिया है और वह यह है कि ये कदमूलादिक ( 'आदि' शब्दसे प्रथम गाथोक्त छाल, कोपल, शाखा, पत्र, पुष्प, फल और बीज सभी ग्रहण करने चाहिये ) अपनी प्रथमावस्थामे प्रत्येक होते हैं। यथा -- जो वि य मूलादीया ते पत्तेया पढमदाय ।। यह नियम इस बातको सूचित करता है कि कदमूलादिकचाहे वे समभग हो या न हो, उनकी छाल मोटी हो अथवा पतली-अपनी प्रथमावस्थामे सब प्रत्येक होते हैं। उत्तरकी अवस्थामोमे वे प्रत्येक होते हैं और अनतकाय भी और उनकी खास पहिचान ऊपर वतलाई गई है। नतीजा इस सारे कथनका यह निकलता है कि सभी कदमूल अनतकाय नहीं होते, न सर्वांगरूपसे ही अनतकाय होते हैं और न अपनी सारी अवस्थाओमे अनतकाय रहते हैं। बल्कि वे प्रत्येक और अनतकाय ( साधारण ) दोनो प्रकारके होते है, किसीकी छाल ही अनतकाय होती है, भीतरका भाग नही और किसीका
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy