SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 804
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्या सभी कंदमूल अनंतकाय होते हैं ? :२: आमतौरपर जैनियोमे यह माना जाता है कि कदमूल सव अनतकाय होते हैं-उनमे एक-एक शरीरके आश्रित अनत जीव विद्यमान हैं-इसलिये हमारे बहुतसे पाठकोको यह प्रश्न भी कुछ नया सा मालूम होगा। परन्तु नया हो या पुराना, प्रश्न अच्छा है और इसका निर्णय भी शास्त्राधारसे ही होना चाहिये । अत यहाँ उसीका प्रयत्न किया जाता है - गोम्मटसारके जीवकाडमे, प्रत्येक और अनतकायकी पहिचान बतलाते हुए, विशेष नियमके तौर पर एक गाथा इस प्रकारसे दी है - मूले कंदे छल्टो पवालसालदलकुसुमफलवीजे।। समभंगे सदिगंता अलमे सदि होंति पत्तेया ॥१८७। इसमे यह बतलाया है कि जिस किसी कलमूलादिकके' तोडनेपर समभग हो जायें उसे अनतकाय और जिसके समभग न हो-बीचमे ततु रहे, ऊँचा-नीचा टूटे-~-उसे प्रत्येक समझना चाहिये। इससे स्पष्ट है कि कदमूल भी दो प्रकारके होते हैं, एक प्रत्येक और दूसरे अनंतकाय । उक्त गाथाके अनन्तर एक दूसरे विशेष नियमकी प्रतिपादक गाथा इस प्रकार है - कंदरस व सूलरूस व सालाखंदस्स वा वि बहुलतरी । छल्ली साणंतजिया पत्तेयजिया तु तणुकदरी ॥१८८॥ इस गाथामे कदमूलादिककी छाल ( त्वचा ) के सम्बन्धमे १. आदिक शब्दसे छाल, कोपल, शाखा, पत्र, पुष्प, फल और वीज समझना चाहिए।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy