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________________ - युगवीर - निवन्धावली स्वीकार करनी चाहिये। ऐसा विचार कर आपने उत्तर दिया कि, खैर । यदि बाजार से सब सामग्री शुद्ध आजावे और घी भी हिन्दू के यहाँ का मिल जावे तो कुछ हरज नही, हम यही पर स्वयं बनाकर भोजन कर लेवेंगे ।" ७७० वेश्याने पडितजीकी इस स्वीकारता पर बहुत बडी खुशी जाहिर की और उनको यकीन दिलाया कि सब सामग्री बहुत शुद्धता के साथ मँगाई जावेगी और घी भी हिन्दू ही के यहाँ का होगा और उसी वक्त अपने नोकरोको सब सामग्री लाकर हाजिर करने की आज्ञा कर दी । - जव सव सामग्री आ चुकी, चौका बरतन भी हो चुका और पडितजी स्नान करके रसोईमे जाने ही को थे, तब वेश्याने ast ही नम्रता और विनयके साथ पडितजीसे यह अर्ज की किमहाराज | आज मेरा चित्त आपके गुणोपर वहुत ही मोहित हो रहा है और आपकी भक्तिसे इतना भीग रहा है कि उसमे अनेक प्रकारसे आपकी सेवा करनेकी तरगें उठ रही हैं, नही मालूम पूर्वके जन्मका ही यह कोई संस्कार है या क्या ? इस समय मेरा हृदय इस बात के लिये उमड मेरी मनोकामना है कि आज मैं स्वयं ही अपने हाथसे भोजन बनाकर आपको खिलाऊँ, और इस प्रकार से अपने मनुष्य जन्मको सफल करूं । क्या आप मुझ अभागिनकी इस तुच्छ विनतीको स्वीकार करने की कृपा दरशावेंगे ? आपकी इस कृपाके उपलक्ष मे यह दासी ५००) रु० और भी आपकी भेट करना चाहती है" यह कहकर तुरन्त पांच सौ रुपयेकी थैली मँगाकर पडितजीके आगे रखदी । रहा है और यही ' वैश्याके इन कोमल वचनोको सुनकर यद्यपि पडितजीको कुछ रोष-सा भी आया, कुछ हिचकिचाहट सी भी पैदा हुई और
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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