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________________ - - - - - -- - ७६० युगवीर-निवन्धावली नौकरोके करनेसे अपनेको कुछ धर्म-लाभ होना मानते हैं ? यदि यह सत्य है ( अर्थात् पूजन नौकरोका काम है और उससे अपनेको धर्म-लाभ होता है ) तो फिर हमारे उक्त कार्योंके नौकर द्वारा सम्पादित होने और उनसे हमको धर्म-लाभ पहुँचनेमे कौन बाधक है ? इसीसे हमने ऐसा कहा है। श्रीमान--(कुछ लज्जित होकर ) भाई साहब । काम तो पूजनका भी अपने ही करनेका है, नोकरसे करानेका नही और अपने आप ही पूजन करनेसे कुछ धर्म-नाम भी हो सकता है, अन्यथा नही, परन्तु क्या किया जाय, आजकल ऐसा ही शिथिलाचार हो गया है कि कोई मन्दिरजीमे पूजन करने ही नही आता है। धीमान-सेठजो । क्या आपके लिये यह लज्जाको बात नहीं है कि जिस भगवानकी पूजाको इन्द्र, अहमिन्द्र और चक्रवादिक राजा वडे उत्साह के साथ करते हैं, आप उसको स्वय न करके नौकरोसे कराना चाहे और इस प्रकार सर्वसाधारणपर श्रीजीके प्रति अपना अनादरभाव प्रगट करें ? क्या आपके इस नोटिससे वे लोग, जिनके हृदयोपर आपने नवीन मन्दिर बनवाने और उसकी प्रतिष्ठा करानेसे अपनी भगवद्-भक्ति और धर्मानुरागता अकित की थी, यह नतीजा नही निकालेंगे कि 'आपमे भगवद्-भक्ति और धर्मानुरागताका लेश भी नही है और जो कुछ आपने किया है वह केवल अपनी मान-बडाई और लोक-दिखावेके लिये किया है ?' यदि आपके हृदयमे भगवान की भक्ति और उनके पूजनसे अनुराग नही था और आप जानते थे कि अन्य मन्दिरोमे भी पूजनका प्रबन्ध मुश्किलसे होता है तो फिर आपको इस शहरमे कई मन्दिर
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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