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________________ धीमान और श्रीमानकी बातचीत :२: धीमान-भाई साहब । आज आप क्या लिख रहे हैं ? श्रीमान-मैं 'जैनगजट' में छपवानेके लिये एक नोटिस लिख रहा हूँ। धीमान-किस बातकी नोटिस ? श्रीमान–'भाईजी' आप जानते ही हैं कि हमने जो नवीन मन्दिर तैयार कराया है और जिसकी गतवर्ष प्रतिष्ठा हुई थी उसमे पूजा करनेकी बडी दिक्कत रहती है। वहा नित्य पूजन करनेके लिये हमको एक पाँच-सात रुपये महीनेके आदमीकी जरूरत है, उसके लिये यह नोटिस लिख रहा हूँ। घोमान-सेठजी । एक आदमीकी तो हमको भी जरूरत है, कृपाकर एक नोटिस 'जैन गजट' में हमारे लिये भी लिख भेजिये। श्रीमान-आपको किस कामके लिये कैसे आदमीकी जरूरत है ? धीमान-हमको ऐसे आदमीकी जरूरत है जो हमारो तरफ से मन्दिरजीमे जाकर नित्य दर्शन और सामयिक किया करे, शास्त्र सुना करे तथा हमारी तरफसे व्रत-नियम पालन किया करे और प्रत्येक अष्टमी, चतुर्दशी तथा अन्य पर्वके दिनोमे प्रौषधोपवास भी किया करे । श्रीमान–पडितजी । आप तो बुद्धिमान हैं। भला कही ऐसे कामोके वास्ते भी नौकर रक्खा जाता है। ये काम तो अपने ही करनेके होते हैं। ऐसे कामोको नौकरोसे करानेमे क्या धर्म-लाभ हो सकता है ? धीमान–तो क्या फिर त्रैलोक्यनाथ श्री भगवानकी पूजाका काम नौकरोके करने और उनसे कराने का होता है ? और क्या
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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