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________________ ४८ दुःसह दुःखद वियोग ७५३ वार दिल्ली जाने लायक हो जाऊँ। मैं आपसे सत्य कहता हूँ कि मुझे इतनी वडो संस्थाकी बहुत अधिक चिन्ता है कि देखो ठीक तरहसे काम नही चल रहा है। मुझे अपने जीवनकी चिन्ता नही है, किन्तु वीरसेवामन्दिरकी बहुत चिन्ता है। मैं पुन: आपको विश्वास दिलाता हूँ कि जिस दिन भी कष्ट कुछ कम होगा मैं तुरन्त चला आऊँगा। वायुयानसे आनेका साहस इसलिए नही करता हूँ कि रक्तचाप होता रहता है । अब तो नित्य दिल्लीकी ओर ध्यान जाता रहता है। मुझे और कोई झंझट वाधक नही है।" एक-दो वार मैने स्वय उनके पास कलकत्ता जाने का विचार भी किया परन्तु उन्होने कभी तो अपने बात-चीत करने की स्थितिमे न होने के कारण और कभी मेरे सफर-कष्टके कारण रोक दिया और पत्र-व्यवहारसे भी कितनी ही बात हो सकती हैं मैं पत्रका उत्तर शीघ्र दूगा, ऐस लिख दिया।। हाल में डॉ० श्रीचन्दने १८ दिसम्बरके पत्रमे उनकी अस्वस्थतापर वेदना तथा चिन्ता व्यक्त करते हुए और उनके शीघ्र ही नीरोग होनेको भावना करते हुए उन्हे उनके अनुकूल एक शुभ समाचार भी दिया था, जिसकी वे बहुत दिनोसे प्रतीक्षा कर रहे थे। साथ ही यह भी लिखा था कि वीरसेवामन्दिर ट्रस्टकी मीटिंग अब जल्दी बुलाई जानेको है। आप कब तक दिल्ली आ सकेंगे ? यदि किसी तरह आना न बन सके तो मैं मुख्तार सा० को साथ लेकर आपके पास आना चाहता हैं। आप साह शान्तिप्रसादजीको भी प्रेरणा कीजिये कि वे दस्टकी इस मीटिंगमे जरूर शरीक हो। इस पत्रका बा० छोटेलाल स्वय उत्तर नही दे सके। उन्होने २७ दिसम्बरको स्वास्थ्यकी अधिक
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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