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________________ सन्मति-विद्या-विनोद ७३९ चित्रादिके आयोजनो द्वारा इस ग्रन्थमालाको उसके निर्माणकार्यमे अपना खुला सहयोग प्रदान करें और धनवान बन्धु अपने धन तथा साधन-सामग्रीको सुलभ योजनाओ द्वारा उसके प्रकाशनकार्यमे अपना पूरा हाथ बटाएँ। और इस तरह दोनो ही वर्ग इसके सरक्षक और सवर्द्धक बनें। मैं स्वय भी अपने शेष जीवनमे कुछ बाल साहित्यके निर्माणका विचार कर रहा हूँ। मेरी रायमे यह ग्रन्यमाला तीन विभागोमे विभाजित की जायप्रथम विभागमे ५से १० वर्ष तकके वच्चोके लिये, दूसरेमे ११से १५ वर्ष तककी आयु वाले बालक-बालिकाओके लिये और तीसरेमे १६से २० वर्पकी उम्रके सभी विद्यार्थियोके लिये उत्तम बाल-साहित्यका आयोजन रहे और वह साहित्य अनेक उपयोगी विपयोमे विभक्त हो, जैसे बाल-शिक्षा, बाल-विकास, बालकथा, बालपूजा, बालस्तुति-प्रार्थना, बालनीति, बालधर्म, बालसेवा, बाल-व्यायाम, बाल-जिज्ञासा, वालतत्व-चर्था, बालविनोद, बालविज्ञान, बाल-कविता, बाल-रक्षा और वाल-न्याय आदि। इस वाल-साहित्यके आयोजन, चुनाव और प्रकाशनादिका कार्य एक ऐमी समितिके सुपुर्द रहे, जिसमे प्रकृत विषयके साथ रुचि रखनेवाले अनुभवी विद्वानो और कार्यकुशल श्रीमानोका सक्रिय सहयोग हो । कार्यके कुछ प्रगति करते ही इसकी अलगसे रजिस्टरी और ट्रस्टकी कार्रवाई भी कराई जा सकती है। इसमे सन्देह नही कि जैनसमाजमे वाल-साहित्यका एकदम अभाव है-जो कुछ थोडा बहुत उपलब्ध है वह नहीके बराबर है, उसका कोई विशेष मूल्य भी नही है। और इसलिये जैनदृष्टिकोणसे उत्तम बाल-साहित्यके निर्माण एवं प्रसारकी बहुत बडी जरूरत है। स्वतन्त्र भारतमें उसकी आवश्यकता और भी
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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