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________________ ७३८ युगवीर निवन्धावली दादीजीने बनवाकर दिया था, तथा पैरोमे नोखे थे, जिन सबकी मालियत ७५) रु०के करीव थी। दोनोके पास ५०) २०के करीब नकद होगे। इस तरह जेवर और नन्दीका तखमीना २५०) रु. के करीवका होता है, जिसकी मालियत आज ७००) ६०के लगभग बैठती है। और इसलिये मुले ७००) २० देने चाहिये, न कि २५०) २० । परन्तु मेरा अन्तरात्मा इतने से भी सन्तुष्ट नहीं होता है, वह भूलचूफ आदिके रूपमें ३००) रुपये उसमे मोर भी मिलाकर पूरे एक हजार कर देना चाहता है। अतः पुत्रियो ! आज मैं तुम्हारा ऋण चुकानेके लिये १०००) १० 'सन्मति-विद्या-निधि'के रूपमे वीरसेवामन्दिरको इसलिये प्रदान कर रहा हूँ कि इस निधिने उत्तम वाल-साहित्यका प्रकाशन किया जाय-'सन्मति-विद्या' अथवा 'सन्मति-विद्या-विनोद' नामकी एक ऐसो नाकर्षक वाल-ग्रन्यमाला निकाली जाय जिसके द्वारा विनोदरूपमै अथवा वाल-सुलभ सरल और सुबोध-पद्धतिसे सन्मतिजिनेन्द्र ( भगवान् महावीर ) को विद्या-शिक्षाका समाज और देशके वालक-बालिकाओमे यथेष्टरूपसे सञ्चार किया जाय-उसको उनके हृदयोमे ऐमी जड जमा दी जाय जो कभी हिल न सके अथवा ऐसी छाप लगा दी जाय जो कभी मिट न सके। मेरी इच्छा__मैं चाहता हूँ समाज इत छोटीसी निधिको अपनाए, इसे अपनी ही अथवा अपने ही बच्चोको पवित्र निधि समझकर इसके सदुपयोगका सतत् प्रयत्न करे और अपने बालक-बालिकाअं सन्तान-दर-सन्तान इस निधिसे लाभ उठानेका अवसर प्र करे। विद्वान् बन्धु अपने सुलेखो, सलाह-मशवरो और सुरुचि
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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