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________________ युगवीर - निवन्धावली साहित्य, जैन- इतिहास ओर जैन समाजकी चिन्ताओ, उनके उत्थान - पतनकी चर्चाओ, अनुसधान कार्यों और सुधार योजनाओ आदिसे परिपूर्ण हैं । इन परसे चालीस वर्षकी सामाजिकप्रगतिका सच्चा इतिहास तैयार हो सकता है | सच्चे इतिहास के लिये व्यक्तिगत पत्र वडी ही कामकी चीज होते हैं । ७१८ सन् १६० १ मे जब मैं साप्ताहिक 'जैन गजटका' सम्पादन करता था तव प्रेमीजी 'जैनमित्र' बम्बईके आफिसमे क्लर्क थे । भाई शीतल प्रसादजी ( जो वादको ब्रह्मचारी शीतल प्रसादजी के नाम से प्रसिद्ध हुए) के पत्रसे यह मालूम करके कि प्रेमीजीने जैनमित्रकी क्लर्कीसे इस्तीफा दे दिया है, मैने अक्टूबर सन् १६०७ के प्रथम सप्ताहमे प्रेमीजीको एक पत्र लिखा था ओर उसके द्वारा उन्हें 'जैन गजट' आफिस, देववन्दमे हेड क्लर्कीपर आने की प्रेरणा की थी, परन्तु उस वक्त उन्होने बम्बई छोडना नही चाहा और वे तबसे बम्बई में ही बने हुए हैं । ८ जनवरी सन् १६०८ के 'जैन गजट' मे मैंने 'जैन मित्र' की उसके एक आपत्तिजनक एव आक्षेपपरक लेखके कारण कडी आलोचना की, जिससे प्रेमीजी उद्विग्न हो उठे और उन्होने उसे पढते ही १० जनवरी सन् १६०८ को एक पत्र लिखा, जिससे जान पड़ा कि प्रेमीजीका सम्बन्ध जैनमित्रसे बना हुआ है । समालोचनाको प्रत्यालोचना न करके प्रेमीजीने इस पत्रके द्वारा प्रेमका हाथ बढाया और लिखा- "जबसे 'जैन गजट' आपके हाथमे आया है, जैनमित्र बराबर उसकी प्रशसा किया करता हैऔर उसकी इच्छा भी आपसे कोई विरोध करनेकी नही है.. जो हो गया, सो हो गया हमारा समाज उन्नत नही है, अविद्या बहुत है इसलिये आपके विरोधसे हानिकी शका की जाती है ।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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