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________________ कलन शावनम्होत्तव है। ये सब भो इस महोत्सवके सुन्दर परिणाम है। परन्तु सबसे बड़ा काम जो इस महोत्सवके द्वारा बन सका है वह बालू छोटेलालजीका वारसासनके लिये अपना जीवनदान है। लाखोकरोड़ों का दान भी उसके मुकाबलेमे कोई चीज नहीं। वास्तवमें यह सारा महोत्सव ही बाबू छोटेलालजीका ऋणी है, उन्हीके दिमागकी यह सब उपज है, वे ही इसे वीरसेवामन्दिरते राजगिरि, राजगिरिसे कलकत्ता ले गये हैं। कलकत्ताको सारी मशीनरीके वे ही एक मूविंग-एंजिन ( Moring Engin ) रहे हैं और उन्हींको योजनाओ, महीनोंके अनथक परिश्रमो, व्यक्तिगत प्रभावो तथा स्वास्थ्य तककी बलि चढानेसे यह इस रूपमे सम्पन्न हो सका है। अत. इसके लिये बाबू छोटेलालजी जैसे मूक सेवक का जितना भी आभार माना जाय और उन्हे जितना भी धन्यवाद दिया जाय वह सब थोडा है। आप स्वस्थताके साथ दोर्घजीवी हो, यही अपनी हार्दिक भावना है।' १ अनेकान्त वर्ष ७, कि. ३-४, नवम्बर १९४४
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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