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________________ युगवीर-निवन्धावली अकूटलेखकताका एक दूसरा नमूना समझना चाहिये । जान पडता है आप ऐसे ही सत्यके अनुयायी अथवा भक्त है । और इसीलिये दूसरोका नग्न सत्य भी आपको सर्वथा मिथ्या और सफेद झूठ नजर आता है। यह तो हुई पहले लेखके शिक्षाशकी बात, अब दूसरे लेखके शिक्षाशको लीजिये। द्वितीय लेखका उद्देश्य और उसका स्पष्टीकरण समालोचकजीने पहले लेखके उदाहरणाशोको जिस प्रकार अपनी समालोचनामे उद्धृत किया है उस प्रकारसे दूसरे लेखके उदाहरणाशको उद्धृत नही किया और इसलिये यहाँ पर इस दूसरे छोटे-से लेखको पूरा उद्धृत कर देना ही ज्यादा उचित मालूम होता है, और वह इस प्रकार है :___ "हरिवंशपुराणादि जैनकथाग्रन्थोमे चारुदत्त सेठकी एक प्रसिद्ध कथा है। यह सेठ जिस वेश्यापर आसक्त होकर वर्षांतक उसके घरपर, बिना किसी भोजन-पानादि-सम्बन्धी भेदके, एकत्र रहा था और जिसके कारण वह एक बार अपनी सम्पूर्ण धनसपत्तिको भी गँवा बैठा था उसका नाम 'वसन्तसेना' था। इस वेश्याकी माताने, जिस समय धनाभावके कारण चारुदत्त सेठको अपने घरसे निकाल दिया और वह धनोपार्जनके लिये विदेश चला गया उस समय वसन्तसेनाने, अपनी माताके बहुत कुछ कहने पर भी, दूसरे किसी धनिक पुरुषसे अपना सबध जोडना उचित नही समझा और तब वह अपनी माताके घरका ही परित्याग कर चारुदत्तके पीछे उसके घरपर चली गई। चारुदत्तके कुटुम्बियोने भी वसन्तसेनाको आश्रय देनेमे कोई आना-कानी नही की। वसन्तसेनाने उनके समुदार आश्रयमे
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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