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________________ विवाह-क्षेत्र-प्रकाश कारणसे सही, इसमे सदेह नहीं कि उन्होने ऐसा करके समालोचकके कर्तव्यका निर्वाह नहीं किया है । समालोचकका यह धर्म नही है कि वह अपनी तरफसे कुछ बाते खडी करके उन्हें समालोच्य पुस्तककी बाते प्रकट करे, उनके आधारपर अपनी समालोचनाका रग जमाए और इस तरह पाठको तथा सर्वसाधारणको धोखेमे डाले। समालोचकका कर्तव्य है कि पुस्तकमे जो वात जिस रूपसे कही गई है उसे प्राय. उसी रूपमै पाठकोके सामने रक्खे और फिर उसके गुण-दोपोपर चाहे जितना विवेचन उपस्थित करे, उसे समालोच्य पुस्तककी सीमाके भीतर रहना चाहियेउससे बाहर कदापि नहीं जाना चाहिये--उसका यह अधिकार नहीं है कि जो बात पुस्तकमे विधि या निषेध रूपसे कही भी नही कही गई उसकी भी समालोचना करे अथवा पुस्तकसे घृणा उत्पन्न करानेके लिये पुस्तकके नामपर उसका स्वय प्रयोग करे--उसे एक हथियार बनाए । भगी, चमार और चाडालका नाम तक भी पुस्तकमे कही नही है, फिर भी पुस्तकके नामपर उनके विवाह की जो बात कही गई है वह ऐसी ही घृणोत्पादक दृष्टि अथवा अनधिकार चेप्टाका फल है । भूमिकामे एक वाक्य "वाबू जुगलकिशोरजीके लिखे अनुसार" इन शब्दोके अनन्तर निम्न प्रकारसे डवल कामाजके भीतर दिया है और इस तरह उसे लेखकका वाक्य प्रकट किया है "गृहस्थके लिये स्त्रीकी जरूरत होनेके कारण चाहे जिसकी कन्या ले लेनी चाहिये ।" परन्तु समालोच्य पुस्तकमे यह वाक्य' कही पर भी नही है, और न लेखककी किसी दूसरी पुस्तक अथवा लेखमे ही पाया जाता है, और इसलिये इसे समालोचकजीकी सत्यवादिता और
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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