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________________ हेमचन्द्र-स्मरण ६७६ को महत्व देंगे-स्वतत्र रूपसे लेखके महत्वको नही आंक सकेंगे, और इसलिये मेरे इस लिखनेपर आपत्ति करते हुए उसने अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की। यह भी हेमकी स्वाभिमानी प्रकृतिकी एक लहर थी। विवाहके कुछ अर्से बाद हेमकी प्रकृति और प्रवृत्तिमें भारी परिवर्तन हुआ जान पडता है, इसीसे प्रेमीजी द्वारा उसकी कोई खास शिकायत सुनने में नही आई और न हेमने ही प्रेमीजीकी कोई खास शिकायत लिखी है। हेम अब दुकानके काममें पूरा योग देता था, गृहस्थाश्रमको जिम्मेदारीको समझ गया था, उसका जोवन सादा, सयत तथा कितने ही ऊँचे ध्येयोको लिये हुए था, और इससे सुहद्वर प्रेमीजीका पिछला जीवन बहुत-कुछ निराकुल तथा सुखमय हो चला था। परन्तु दुर्देवसे वह देखा नही गया और उसने उनके इस अधखिले पुष्पसम इकलौते पुत्रको अकालमें ही उठा लिया और उनकी सारी आशामओपर पानी फेर दिया ? यह देखकर किसे दु.ख नही होगा ? सद्गत हेमचन्द्रके लिये यह हादिक भावना करता हूँ कि उसे परलोक मे सुख-शान्तिकी प्राप्ति होवे और उसकी सहधर्मिणी तथा बच्चोका भविष्य उज्ज्वल बने।' १. स्व० हेमचन्द्र, ११ मार्च १९४४ ।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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