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________________ ६७८ युगवीर- निवन्धावली जब लेख वापिस चला गया तब प्रेमीजीने अपने ४ मईके पत्र मे लिखा- "हेम लेखके लिखनेमे तैयारी तो बहुत कर रहा है। पर क्या लिखेगा, सो वह जाने । मेरी राय तो यह थी कि इस लेखको आप ही संशोधित परिवर्तित करके छाप देते, परन्तु वह नहीं माना और वापस बुला लिया ।" इधर हेमने अपने उक्त ५ मई वाले पत्रके अन्त मे लिखा था - " आपने लेखपर अपनी सम्मति नही लिखी। मुझे डर लगता है कि कामताप्रसाद सरीखी मेरी भी दुर्दशा आप नोटो द्वारा न कर दें ।” इन सब बातोको ध्यान मे रखते हुए जब लेख वापिस आया तब उसे अच्छा बनाने के लिये सशोधन, परिवर्तन और परिवर्धनादिके द्वारा काफी परिश्रम किया गया ओर उसका प्रारंभिक अश २ योगमार्ग" नाम से प्रथम वर्षके अनेकान्त की संयुक्त किरण न०८, ९, १० मे प्रकाशित किया गया । और इस मुद्रित लेखको पढ़कर हेमचन्द्रको प्रसन्नता हुई और उसमें उसने आमूलचूल - जैसे परिवर्तनका अनुभव किया और मुझे ऐसा लिखा कि मैं इतने ऊँचे लेखका अधिकारी नही था, आपने पुत्रवात्सल्यको लेकर उसे इतना अच्छा बना दिया है । परन्तु मैंने लेखके शुरुमे लेखकका परिचय देते हुए जो यह लिख दिया था कि 'लेखकसमाजके सुप्रसिद्ध साहित्यसेवी विद्वान् पं० नाथूरामजी प्रेमी के सुपुत्र हैं वह हेमको असह्य जान पडा । उसे ऐसा लगा कि इससे पाठक प्रेमीजी जैसे विद्वानका पुत्र होनेके नाते उसके लेख f १. इस तैयारीका कुछ पता हेमके ५ मार्चके पत्र ( न० ५ ) से भी लगता है । २. लेखका दूसरा अश 'सरल योगाभ्यास' नामसे तृतीय वर्षके अनेकान्तकी ५ वीं किरण में प्रकाशित हुआ है ।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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