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________________ समाजका वातावरण दूषित : १० : आजकल कानजीस्वामीकी चर्चाको लेकर जैनसमाजका वातारण बहुत-कुछ दूषित जान पडता है, जिसका एक ताजा उदाहरण पत्रोमे प्रकाशित इन्दौर जैनसमाजकी समस्त गोठोके एक-एक व्यक्तिके हस्ताक्षरसे दिया गया वह वक्तव्य है जो कही अपीलके रूपमे और कही घोषणाके रूपमे प्रकट हुआ। समझमे नही आता कि कानजीस्वामीने ऐसा कौनसा अक्षम्य अपराध किया है जिसके कारण कुछ विद्वान् उनके पीछे ऐसे हाथ धोकर पड़े हैं कि उन्होने सभ्यता और शिष्टताको भी गंवा दिया है, व्यक्तिगत आक्षेपो तथा व्यङ्गोपर उतर आये हैं, अनेकान्त सिद्धान्तको, जो कि विरोधका मथन करनेवाला है, भुलाकर उसकी ओर पीठ दिये हुए हैं, और अपने विरोधकी धुनमे जाने-अनजाने कभी-कभी जिनवाणीके प्रति भी अवज्ञात्मक मूडको अपना लेते हैं । जहाँ तक मैंने कानजी स्वामीका उनके भाषणो तथा प्रवचनलेखोसे अनुभव किया है मुझे उनमे मुख्यत. एक ही दोप जान पडा है और वह है भाषण करते अथवा उपदेश देते हुए नय-- विवक्षाको छोडकर प्राय एकान्तकी तरफ ढल जाना, जिसे मैने आजसे कोई ११ वर्ष पहले अपने उस लेखमे कुछ विस्तारके साथ व्यक्त किया था, जो कानजीस्वामीके 'जिनशासन' नामक प्रवचन-लेखके प्रतिवादकरूपमे लिखा गया था । परन्तु इस १ देखो, 'समयसारकी १५वीं गाथा और कानजीस्वामी' नामक लेख, अनेकान्त वर्ष १२ किरण, ८ ( जनवरी १९५४ ) पृष्ठ २६८, २६६ ( यह पूरा लेख खासतौरसे पढने तथा प्रचार किये जाने के योग्य है, जिसे अव 'कानजीस्वामी और जिनशासन' नाम दिया जाकर युगवीरनिबन्धावली के द्वितीय खण्डमें प्रकाशित किया जा रहा है।)
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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