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________________ एक ही अमोघ उपाय ६२५ फलस्वरूप कितने ही सैनिकोने हथियार डाल दिये हैं और उससे समाजको बहुत कुछ हानि पहुँची है । इन महापडितोकी वह बीमारी और कुछ नही, इनका 'मानसिक दौर्बल्य' है, जो इन्हे उक्त लेखोका उत्तर लिखनेमे प्रवृत्त नही होने देता। फिर चाहे उसे अकर्मण्यता कहिये, उत्साहहीनता कहिये, साहसशून्यता कहिये अथवा कायरता कहिये या कुछ और कहिये, परन्तु है वह सव मानसिक कमजोरी नामकी एक बीमारी। निःस्वार्थ रूपसे सेवाभावकी कमी भी उसीका एक परिणाम है। अपने इस मानसिक दौर्बल्यके कारण इन पडितोमे एक प्रकारकी झिझक बनी हुई है, जो इन्हे निर्भयताके साथ आगे बढने नही देती। ये सोचते रहते हैं कि 'अगर कूदूँ, वगर गिर जाऊँ, तो वलेकिन क्या होगा ।' इन्हे रह-रहकर यह खयाल सताता है कि कही हमारी वातका खण्डन न हो जाय, हमारी युक्ति पोच न सिद्ध कर दी जाय, हमारा साहित्य दूसरोकी नजरोमे घटिया और बेतुका न जंचने लगे और उसके कारण हमारी प्रतिष्ठा कही भग न हो जाय, हमारी शानमे बट्टा न लग जाय । हम यदि दूसरोके उत्तर-प्रत्युत्तर मे नही पडेंगे तो हमारी त्रुटियाँ गुप्त रहेगी-हमारी कमजोरियाँ दूसरोपर प्रकट नही हो सकेंगी-और इससे हमारी मान-मर्यादा बनी रहेगी । अथवा हम दूसरोके लिये क्यो मगजपच्ची करे ? क्यो अपनी जान आफत ( सकट ) मे डालें ? हमे क्या पडी है और हमारा इसमे क्या लाभ है ? इस तरहके विचारोके चक्कर और उनकी उधेडवुनमें इन लोगोसे प्राय कुछ भी करते-धरते नही बनता। ये नपुसको की तरह पडे-पडे अपना तथा अपने धर्म और समाजका पतन देखते रहते हैं । इन्हे अपने उसी मानसिक दौर्बल्यके कारण यह समझ ही नही पडता कि युद्धके अवसरपर हमने जो
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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